TIKAKARN / आज़मगढ़ : चाइल्ड केयर क्लिनिक सिधारी पर शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.डी. सिंह ने राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस के अवसर पर कहा कि किसी बीमारी के विरुद्ध रोग प्रतिरोधक क्षमता अर्थात इम्युनिटी बढ़ाने के लिए टीकाकरण बेहतर और आवश्यक उपाय है। TIKAKARN
संक्रामक रोगी की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे उपयुक्त, प्रभावी और सस्ती व्यवस्था मानी जाती है, लेकिन रूढ़िवादी परंपराओं के तहत आज भी ग्रामीण क्षेत्र के बहुत सारे बच्चे टीकाकरण से वंचित रह जाते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें असाध्य रोगी बना देता है। टीकाकरण के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर वर्ष 16 मार्च को राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाया जाता है। TIKAKARN
- यह अभियान कोरोना काल के बाद और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इस समय कोविड टीकाकरण दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान बन गया है। आजमगढ़ के ख्यातिलब्ध शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.डी. सिंह ने बताया कि टीके लगवाने के दिन अगर बच्चा मामूली रूप से बीमार है, सर्दी, खांसी, दस्त से पीड़ित है, तब भी उसे समय अनुसार टीके लगवाना सुरक्षित है। शिशु को लगने वाला कोई टीका पकता है और किसी में बुखार आता है या दर्द होता है, तो ऐसी स्थिति में घबराए नहीं। टीबी से बचाने वाला बीसीजी का टीका पक भी सकता है। टीका पकना या बुखार आना बताता है कि टीके ने अपना काम करना शुरू कर दिया है। अब बच्चा उस बीमारी से पूरी तरह सुरक्षित है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.डी. सिंह ने बताया कि शून्य से दो साल तक के बच्चों को विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं। बच्चे के पैदा होते ही बीसीजी का टीका, हेपिटाइटिस बी का टीका और पोलियो ड्रॉप पिलानी चाहिए। फिर डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह के बच्चों में डीपीटी, हेपटाइटिस बी, हिब, रोटा वायरस और निमोनिया के टीके लगाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य बीमारियों से बचाने के लिए भी शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने को टीके लगाए जाते हैं, जिससे बच्चों के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। इन रोगों में खसरा, टिटनेस, पोलियो, टीबी, गलाघोंटू, काली खांसी, हेपिटाइटिस बी, निमोनिया, इनफ्लुएंजा, रोटावायरस, न्यूमोकोकल और जापानी इंसेफेलाइटिस आदि प्रमुख है। पोलियो और रोटावायरस के अतिरिक्त सभी टीके इंजेक्शन के जरिए लगाए जाते हैं। साथ ही गर्भवती महिला को टिटनेस के दो टीके लगाकर उन्हें वह उनके नवजात शिशु को टिटनेस से बचाया जाता है। TIKAKARN
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार वर्ष 2015-16 में 12 से 23 माह की उम्र के 76.9% बच्चों को टीके लगाए जा रहे थे, जबकि 2019-21 में आंकड़ा बढ़कर 84.5 फ़ीसदी हो गया। 97.3% बच्चों को 12 से 23 माह की उम्र में बीसीजी से बचाव का टीका लगाया जा रहा है। 12 से 23 माह के 80.8 फ़ीसदी बच्चे पोलियो की खुराक ले चुके होते हैं। इसी आयु वर्ग के 88.1 फ़ीसदी बच्चे पेंटा और डीपीटी वैक्सीन के टीके लगवा चुके होते हैं, इससे पहले यह आंकड़ा 79.5 फ़ीसदी पर था। 89.1 फ़ीसदी बच्चों को खसरा से बचाव के टीके लग चुके हैं, इससे पूर्व 76.2 फीसदी बच्चों को ही खसरे से बचाव के टीके लग रहे थे। डॉ. डी.डी. सिंह ने कहा कि यह हमेशा याद रखें कि बच्चों में बीसीजी का टीका, डीपीटी के टीके की तीन खुराक, हेपटाइटिस बी, पोलियो की तीन खुराक व खसरे का टीका उनकी पहली वर्षगांठ से पहले लगवा लेना चाहिए। यदि भूलवश कोई टीका छूट गया हो तो याद आते ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता या बाल रोग चिकित्सक से संपर्क कर टीका अवश्य लगवाएं। टीके तभी पूरी तरह से असरदार होते हैं जब सभी टीकों का पूरा कोर्स सही उम्र पर दिया जाए। मामूली सर्दी, खासी, दस्त और बुखार की अवस्था में भी यह सभी टीके लगवाना सुरक्षित है।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.डी. सिंह ने कहा कि छोटे बच्चों को खुश रखने के लिए जिस प्रकार आप उनके लिए ढेर सारे खिलौने खरीदते हैं, उसी प्रकार से बच्चों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए जरुरी है कि आप उन्हें समय पर टीके जरूर लगवाएं। TIKAKARN
आज के दौर में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है और यह जरुरी भी है। बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और इन्हें विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाने का सरल उपाय है नियमित टीकाकरण। हालाँकि दुर्भाग्यवश अभी भी हमारे देश में लगभग 60 प्रतिशत बच्चे ही सभी प्रकार के टीकों का पूरा लाभ उठा पाते हैं। इसलिए आप अपने महत्वपूर्ण कामों की लिस्ट में यह बात भी नोट कर लें कि अपने बच्चे को समय समय पर बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह से टीकाकरण अवश्य कराएँगे। TIKAKARN