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    MILLETS KHETI / मोटे अनाजों की प्राकृतिक विधि से खेती करें किसान , केवीके कोटवा के कृषि वैज्ञानिकों ने दिए सुझाव

    ByA.K. SINGH

    Jul 14, 2023

    MILLETS KHETI  / आजमगढ़ :  आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र कोटवा आजमगढ़ के प्रभारी अधिकारी व अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय प्रो० डी के सिंह के निर्देशन में प्राकृतिक विधि से मोटे अनाजों ( सांवा, कोदो, ज्वार, बाजारा,काकुन, रागी, चीना, कुटकी आदि) के बीज उत्पादन हेतु कृषि विज्ञान केंद्र, कोटवा, आजमगढ़ के प्रक्षेत्र पर पंक्तियों में बुवाई करायी गई । इसका उद्देश्य श्री अन्न को बढ़ावा देना तथा जिले में बीजों की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। केंद्र के पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ रुद्र प्रताप सिंह ने बताया पूर्व में भी मोटे अनाज की खेती प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर होती थी । MILLETS KHETI

    अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 के दौरान हमें यह कोशिश करना है कि श्री अन्न की पैदावार प्राकृतिक व रसायन रहित हो । प्राकृतिक खेती के घटकों का प्रयोग अच्छे से करना होगा । यह खेती केवल फसल उत्पादन तक सीमित नहीं है, वरन पौधों में कीट एवं रोग नियंत्रण एवं पौधों को पोषण इत्यादि प्राकृतिक रूप से उपलब्ध संसाधनों से प्रदान की जाएं, खेती को हानिकारक रसायनों से मुक्त किया जाना जरूरी है। मृदा वैज्ञानिक डॉ रणधीर नायक ने बताया किसानों को बीजामृत और जीवामृत का प्रयोग करना चाहिए जिससे मृदा में सूक्ष्म जीवों की सख्या में बढोत्तरी होगी जो फसलों के लिए लाभकारी होती है।    MILLETS KHETI

    डा. संजय कुमार ने बताया कि मोटे अनाज सूखा प्रतिरोधी (drought-resistant) होते हैं, कम जल की आवश्यकता रखते हैं और कम पोषक मृदा दशाओं में भी उगाए जा सकते हैं। यह उन्हें अप्रत्याशित मौसम पैटर्न और जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिये एक उपयुक्त खाद्य फसल बनाता है।सीधी बुवाई ज्यादा गहराई में ना जाए इसका विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। मोटे अनाज की खेती के लिए 4 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक बीज की आवश्यकता होती है। डॉ अर्चना द्विवेदी ने बताया मोटे अनाज फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के अच्छे स्रोत होते हैं। प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन-फ्री या लस मुक्त होते हैं। डॉ विजय कु० विमल ने बताया मोटे अनाज प्रायः पारंपरिक कृषि विधियों का उपयोग कर उगाये जाते हैं, जो आधुनिक, औद्योगिक कृषि पद्धतियों की तुलना में अधिक संवहनीय तथा पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुकूल हैं। MILLETS KHETI

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