JAGRUKTA / आज़मगढ़ : विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। इसको मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है। गौरैया पृथ्वी पर सबसे सबसे पुरानी पक्षी प्रजातियों में से एक है। गौरैया की लुप्त होती प्रजाति एवं कम होती आबादी बेहद चिंता का विषय है। JAGRUKTA
ऐसे में इस दिन को मनाने के बारे में सोचना वाकई गौरैया और दूसरे गायब होते पक्षियों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए सराहनीय कदम है। नेचर फॉरएवर सोसाइटी (भारत) एवं इको-सिस एक्शन फ़ाउंडेशन (फ्रांस) के सहयोग से विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरूआत नासिक के रहने वाले मोहम्मद दिलावर ने गौरैया पक्षी की लुप्त होती प्रजाति की सहायता करने के लिए ‘नेचर फॉरएवर सोसायटी‘ की स्थापना कर की थी। नेचर फॉरएवर सोसायटी ने हर साल 20 मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस‘ मनाने की योजना बनाई गई। JAGRUKTA
इस प्रजाति के विलुप्त होने का कारण बढ़ता शहरीकरण, कटते पेड़, तापमान, रेडिएशन और मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली तरंगे गौरैया के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर रही हैं। अब नन्ही सी चिरैया घर के आंगन से गुम होती जा रही है। कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर धीरेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि पहले के समय मे घरों में अनाज धोया और सुखाया जाता था। यह चिड़िया अनाज चुंगने घरों में आती थी। हमारे बीच रहती थी। आज के समय में अनाजों को सुखाने के तौर तरीके बदल गए है इसलिए पक्षियों ने भी घरों में आना कम कर दिया है । उन्होंने सभी को संदेश दिया कि गौरैया के घोंसले को कभी न तोड़े । JAGRUKTAहिंदू धर्म ग्रंथों में गौरैया पक्षी साहस और सावधानी के प्रतीक के रूप में माना जाता है। गौरैया से सीखा जा सकता है कि कैसे वह सुबह जल्द उठकर हर रोज संघर्ष करती है। इसके अलावा गौरैया को लेकर यह भी मान्यता है कि यह पक्षी जिस घर में आते हैं, वहां सद्भावना का संदेश लेकर आते है। यदि कोई गौरैया घर की खिड़की में आकर बैठती है तो इसे परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। JAGRUKTA